केतन पारेख स्कैम
**केतन पारेख स्कैम (2001): पूरी कहानी**
### भूमिका:
केतन पारेख घोटाला 2001 में हुआ और इसे हरशद मेहता घोटाले के बाद भारतीय शेयर बाजार में दूसरा सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला माना जाता है। केतन पारेख, जो कि एक चार्टर्ड अकाउंटेंट थे, ने शेयर बाजार में हेराफेरी कर करोड़ों रुपये कमाए और भारतीय वित्तीय बाजार में अस्थिरता पैदा की। इस घोटाले ने बाजार में छोटी कंपनियों के शेयरों को कैसे बढ़ाया जाता है, इसका एक प्रमुख उदाहरण प्रस्तुत किया।
### 1. **कौन थे केतन पारेख?**
केतन पारेख का जन्म एक शेयर ब्रोकिंग परिवार में हुआ था। वे हरशद मेहता की तरह ही शेयर बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गए। पारेख को शेयर बाजार में "बिग बुल" के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उन्होंने चुनिंदा कंपनियों के शेयरों में भारी निवेश करके उनके भावों में हेरफेर की। केतन पारेख को एक "पंप एंड डंप" रणनीति का मास्टर माना जाता है, जिसमें एक शेयर की कीमत को पहले कृत्रिम रूप से बढ़ाया जाता है, और फिर जब कीमतें ऊंची हो जाती हैं, तो उसे बेचकर मुनाफा कमाया जाता है।
### 2. **केतन पारेख की रणनीति:**
केतन पारेख ने कुछ चुनिंदा छोटे और मिड-कैप कंपनियों के शेयरों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने इन शेयरों को जमकर खरीदा और उनकी कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाई। उनके पास बैंकिंग प्रणाली तक पहुंच थी और उन्होंने अपने संपर्कों का उपयोग कर लोन लिए, जिससे उन्हें शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर निवेश करने का मौका मिला।
#### - **K-10 स्टॉक्स:**
पारेख ने "K-10" नाम से एक ग्रुप तैयार किया, जिसमें 10 प्रमुख कंपनियों के शेयर शामिल थे। उन्होंने इन शेयरों की कीमतों में भारी हेरफेर की, जिससे वे ऊंची कीमतों पर कारोबार करने लगे। निवेशक इन कंपनियों के शेयरों को खरीदने लगे, क्योंकि उन्हें लगा कि ये शेयर बाजार में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
#### - **बैंक लोन का दुरुपयोग:**
पारेख ने बैंकों से बड़े पैमाने पर कर्ज लिए, विशेषकर माधवपुरा मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक (MMCB) से। उन्होंने इन पैसों का उपयोग शेयर बाजार में निवेश के लिए किया। MMCB को इस लोन के कारण बड़ा नुकसान हुआ और बैंक लगभग दिवालिया हो गया। बैंक के दिवालिया होने से हजारों छोटे निवेशकों को बड़ा नुकसान हुआ, जो इस बैंक में अपनी जमाराशि रखते थे।
### 3. **ग्लोबल ट्रस्ट बैंक और यूटीआई की भूमिका:**
केतन पारेख को ग्लोबल ट्रस्ट बैंक (GTB) और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) का भी समर्थन प्राप्त था। उन्होंने इन दोनों संस्थाओं से पैसे लेकर शेयरों में भारी हेरफेर की। पारेख ने जिन शेयरों में निवेश किया था, उनमें UTI और GTB ने भी निवेश किया, जिससे शेयरों की कीमतें और भी अधिक बढ़ गईं।
### 4. **घोटाले का खुलासा:**
यह घोटाला मार्च 2001 में उस समय सामने आया जब शेयर बाजार में अचानक भारी गिरावट आई। पारेख जिन शेयरों में निवेश कर रहे थे, उनकी कीमतें अचानक गिरने लगीं और बाजार में अस्थिरता बढ़ गई। SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) और RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) ने इस गिरावट की जांच की और पाया कि पारेख ने बाजार में हेरफेर की थी।
#### - **माधवपुरा मर्केंटाइल बैंक का पतन:**
घोटाले का एक मुख्य कारण यह था कि MMCB पारेख को दिए गए लोन की वसूली नहीं कर सका। पारेख ने बैंक से लगभग 800 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था, और जब बाजार में गिरावट आई, तो वह इसे चुकाने में असफल रहे। इससे MMCB का पतन हो गया और बैंक को बंद करना पड़ा।
### 5. **जांच और कानूनी कार्रवाई:**
SEBI ने केतन पारेख के खिलाफ जांच शुरू की और उन्हें स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग करने से रोक दिया गया। उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें धोखाधड़ी और साजिश शामिल थे। अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और 2008 में उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई। उन्हें शेयर बाजार में किसी भी प्रकार की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंधित कर दिया गया।
### 6. **प्रभाव और परिणाम:**
इस घोटाले का सबसे बड़ा असर भारतीय शेयर बाजार और बैंकों पर पड़ा। शेयर बाजार में एक बड़ा संकट आया और निवेशकों का विश्वास टूट गया। MMCB जैसी छोटी बैंकों का पतन हुआ और हजारों छोटे निवेशकों को भारी नुकसान झेलना पड़ा। इसके अलावा, इस घोटाले के बाद SEBI ने कई नियमों और नीतियों में सुधार किए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। बाजार में पारदर्शिता और नियामक तंत्र को और सख्त बनाया गया।
### 7. **सिस्टम में सुधार:**
केतन पारेख घोटाले के बाद, भारतीय वित्तीय प्रणाली में कई सुधार लाए गए। सेबी ने शेयर बाजार की निगरानी को मजबूत किया और "बैडला" ट्रेडिंग (फॉरवर्ड ट्रेडिंग का एक प्रकार) को समाप्त कर दिया, जो इस घोटाले का मुख्य हिस्सा था। इसके अलावा, बैंकिंग सेक्टर में लोन की जांच और मंजूरी की प्रक्रिया को और कड़ा किया गया।
### निष्कर्ष:
केतन पारेख स्कैम ने भारतीय वित्तीय बाजार की कमजोरियों को फिर से उजागर किया और यह दिखाया कि कैसे एक इंसान बाजार में हेरफेर कर सकता है। इस घोटाले ने बाजार में निवेशकों के विश्वास को कम किया, लेकिन इसने भविष्य के लिए बेहतर नियामक प्रणाली की नींव भी रखी। SEBI और RBI की सख्ती और नियमों के सुधार ने भारतीय वित्तीय प्रणाली को अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनाने की दिशा में कदम उठाए।