भारतीय बाजार पर विभिन्न आर्थिक नीतियों और घटनाओं का प्रभाव
भारतीय बाजार पर विभिन्न **आर्थिक नीतियों** और **घटनाओं** का गहरा प्रभाव पड़ता है। ये नीतियाँ और घटनाएँ सरकार की आर्थिक रणनीतियों, वैश्विक बाजार के रुझानों, प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक फैसलों, और अन्य घरेलू व अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से प्रभावित होती हैं। आइए जानते हैं कि भारतीय बाजार पर इनका कैसे प्रभाव पड़ता है:
### 1. **वित्तीय सुधार नीतियाँ (Economic Reforms)**
- **1991 का उदारीकरण (Liberalization)**: 1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिससे भारतीय बाजार को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खोला गया। इस नीति के तहत निजीकरण, उदारीकरण, और वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया गया, जिससे देश में विदेशी निवेश बढ़ा और उद्योगों का विकास हुआ।
- **GST (Goods and Services Tax)**: जुलाई 2017 में लागू हुए GST ने पूरे देश में एकल कर व्यवस्था लागू की। इससे व्यापार की प्रक्रिया सरल हुई और कराधान प्रणाली में पारदर्शिता आई, जिससे विभिन्न उद्योगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- **मेक इन इंडिया**: 2014 में शुरू की गई यह नीति विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य विदेशी निवेश आकर्षित करना और रोजगार सृजन करना था।
### 2. **नोटबंदी (Demonetization)**
- **8 नवंबर 2016** को भारतीय सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को अवैध घोषित कर दिया। इसका तत्काल प्रभाव बाजार पर पड़ा, खासकर *रियल एस्टेट*, *रिटेल* और *गोल्ड* जैसे क्षेत्रों में। नकदी की कमी के कारण छोटे और मध्यम व्यवसायों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
- डिजिटल भुगतान और *कैशलेस इकोनॉमी* को बढ़ावा मिला, जिससे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में उछाल आया, लेकिन असंगठित क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
### 3. **रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीतियाँ (Monetary Policies)**
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा ब्याज दरों को कम या बढ़ाने का भारतीय बाजार पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अगर ब्याज दरें कम होती हैं, तो कंपनियों और आम लोगों के लिए लोन लेना सस्ता हो जाता है, जिससे निवेश और खर्च बढ़ता है।
- उच्च ब्याज दरें निवेश को हतोत्साहित करती हैं और आर्थिक विकास की गति को धीमा कर सकती हैं। उदाहरण के तौर पर, **2008 के वैश्विक वित्तीय संकट** के बाद RBI ने ब्याज दरों में कटौती की, ताकि बाजार में तरलता बढ़ाई जा सके और आर्थिक गतिविधियाँ सुचारु रहें।
### 4. **वैश्विक घटनाओं का प्रभाव (Global Events)**
- **तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव**: भारत एक बड़े पैमाने पर तेल का आयातक है। अगर वैश्विक तेल कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत का व्यापार घाटा और मुद्रास्फीति दोनों बढ़ जाते हैं, जिससे बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, अगर तेल की कीमतें गिरती हैं, तो भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।
- **वैश्विक वित्तीय संकट**: 2008 का वित्तीय संकट, और हाल ही में 2020 का कोविड-19 महामारी संकट, भारतीय बाजार पर गहरा प्रभाव डालते हैं। वैश्विक निवेशकों का भरोसा कम होने से भारतीय शेयर बाजारों में गिरावट आती है और अर्थव्यवस्था में अस्थिरता बढ़ती है।
- **अंतरराष्ट्रीय व्यापार युद्ध और प्रतिबंध**: चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध या रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष जैसी घटनाओं से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होती है। इससे भारतीय बाजार को कच्चे माल की उपलब्धता और कीमतों में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ता है।
### 5. **कृषि सुधार नीतियाँ (Agricultural Policies)**
- **कृषि विधेयक**: 2020 में पारित कृषि विधेयकों का मकसद किसानों को उनकी उपज को खुले बाजार में बेचने की अनुमति देना था। हालांकि, इसके खिलाफ किसानों के विरोध ने बाजार पर अस्थिरता पैदा की और कृषि क्षेत्र में बदलाव की संभावना को चुनौती दी।
- **MSP (Minimum Support Price)**: सरकार द्वारा फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का बाजार पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे किसानों को प्रोत्साहन मिलता है और कृषि उत्पादों की कीमतों में स्थिरता आती है।
### 6. **बजट और वित्तीय नीतियाँ (Budget and Fiscal Policies)**
- हर साल पेश होने वाले केंद्रीय बजट का बाजार पर बड़ा असर होता है। यदि बजट विकासोन्मुखी होता है, तो बाजार में तेजी देखने को मिलती है, जबकि करों में वृद्धि या वित्तीय अनुशासन सख्त होने से बाजार में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- **निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर**: बजट में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर निवेश बढ़ाने से निर्माण और रियल एस्टेट सेक्टर में वृद्धि होती है, जो रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
### 7. **राजनीतिक स्थिरता और चुनाव (Political Stability and Elections)**
- भारतीय बाजार में राजनीतिक स्थिरता और अनिश्चितता का गहरा प्रभाव होता है। यदि देश में स्थिर सरकार होती है और नीतियाँ स्पष्ट होती हैं, तो विदेशी और घरेलू निवेशकों का भरोसा बढ़ता है, जिससे बाजार में सकारात्मक रुझान आते हैं।
- **चुनावों** के दौरान, बाजार में अस्थिरता का माहौल होता है क्योंकि निवेशक नई सरकार की आर्थिक नीतियों का अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं। जैसे ही चुनाव परिणाम स्पष्ट होते हैं, बाजार में स्थिरता लौटती है।
### 8. **कोविड-19 महामारी का प्रभाव (COVID-19 Pandemic)**
- 2020 में महामारी के कारण पूरे विश्व के साथ-साथ भारत में भी आर्थिक गतिविधियाँ ठप हो गईं। शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई और रोजगार, उत्पादन और व्यापार में कमी आई।
- हालांकि, सरकार के राहत पैकेज और आर्थिक सुधारों ने धीरे-धीरे बाजार को उबारने में मदद की। *डिजिटल इंडिया* और *वर्क फ्रॉम होम* जैसी नीतियों ने डिजिटल कंपनियों और ई-कॉमर्स सेक्टर को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया।
### निष्कर्ष:
भारतीय बाजार पर आर्थिक नीतियों और घटनाओं का असर व्यापक और बहुआयामी होता है। जब सरकारें नीतिगत निर्णय लेती हैं, तो यह केवल आर्थिक सूचकांकों पर ही नहीं, बल्कि आम जनता की आजीविका, रोजगार, और निवेश पर भी असर डालता है। भारतीय बाजार का भविष्य, विभिन्न आंतरिक और बाहरी कारकों के बीच संतुलन साधने पर निर्भर करता है।
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