सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

आज़ादी के बाद का युग: भारत के आर्थिक सुधार और बाजार

 **आज़ादी के बाद का युग: भारत के आर्थिक सुधार और बाजार**


भारत ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की, और इसके बाद से देश ने अपनी आर्थिक नीतियों और बाजार संरचना को पुनर्गठित करने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। यहाँ हम आज़ादी के बाद के युग में भारत के आर्थिक सुधार और बाजार के विकास की कहानी को देखेंगे।


### 1. **स्वतंत्रता के बाद की आर्थिक नीति (1947-1991)**


#### **नियोजित अर्थव्यवस्था का मॉडल:**

- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया, जिसमें सरकार का प्रमुख नियंत्रण था। इसका उद्देश्य देश के विकास के लिए सभी क्षेत्रों को योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ाना था।

- **पांच वर्षीय योजनाएँ:** सरकार ने विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के विकास के लिए पाँच वर्षीय योजनाओं को लागू किया। पहले दो योजनाएँ कृषि और बुनियादी उद्योग पर केंद्रित थीं।


#### **सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ:**

- इस समय भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे गरीबी, बेरोजगारी, और आर्थिक असमानता।

- सरकार ने सरकारी उपक्रमों (PSUs) की स्थापना की, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले।


### 2. **आर्थिक सुधारों की आवश्यकता (1980 के दशक में)**


- **संरचनात्मक समस्याएँ:** 1980 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में कई संरचनात्मक समस्याएँ सामने आईं, जैसे कि कम उत्पादन क्षमता, औद्योगिक विकास की कमी, और विदेशी मुद्रा की कमी।

- **लिबरलाइजेशन का संकेत:** इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार ने कुछ कदम उठाने शुरू किए, जैसे कि औद्योगिक नीति में सुधार और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नियमों को आसान बनाना।


### 3. **1991 का आर्थिक सुधार: एक नया मोड़**


#### **आर्थिक उदारीकरण:**

- 1991 में भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। यह सुधार आर्थिक संकट के कारण जरूरी हो गया था, जिसमें विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और उच्च बजट घाटा शामिल था।

- **बजट सुधार:** तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने एक ऐतिहासिक बजट पेश किया, जिसमें कर संरचना में सुधार, आयात पर निर्भरता कम करने, और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने का प्रावधान था।


#### **मुख्य सुधार:**

- **विदेशी निवेश:** विदेशी संस्थागत निवेश (FIIs) को अनुमति दी गई, जिससे विदेशी पूंजी भारत में आने लगी।

- **निजीकरण:** सरकारी उपक्रमों के निजीकरण और विनिवेश के माध्यम से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया गया।


### 4. **बाजार का विकास और प्रतिस्पर्धा**


#### **शेयर बाजार में सुधार:**

- **SEBI की स्थापना:** 1992 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना हुई, जिसने शेयर बाजार को विनियमित करने और निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए ठोस नियम लागू किए।

- **टेक्नोलॉजी का समावेश:** बाजार में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की शुरुआत हुई, जिससे ट्रेडिंग प्रक्रिया में तेजी आई और पारदर्शिता बढ़ी।


#### **नए बाजार अवसर:**

- **बाजार विस्तार:** नई कंपनियाँ शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने लगीं, और निवेशकों की संख्या में वृद्धि हुई। 

- **फिनटेक का उदय:** 2000 के दशक में ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्मों और फिनटेक कंपनियों के आगमन ने निवेश को और अधिक सुलभ बना दिया।


### 5. **वर्तमान स्थिति और भविष्य के लिए दृष्टि**


- आज, भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह तकनीकी नवाचार, विदेशी निवेश, और घरेलू बाजार के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है।

- **समावेशी विकास:** सरकार का लक्ष्य समावेशी विकास को बढ़ावा देना है, जिसमें सभी वर्गों के लोगों को आर्थिक विकास का लाभ मिल सके।


### **निष्कर्ष**


आज़ादी के बाद के युग में भारत के आर्थिक सुधारों ने न केवल बाजार को सशक्त किया, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये सुधार एक समृद्ध, विविध और स्थायी अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में अग्रसर हैं, जो भविष्य में नई संभावनाओं और अवसरों को उजागर करेगा।

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