20वीं सदी के दौरान शेयर बाजार का विस्तार
20वीं सदी के दौरान भारत में शेयर बाजार का विस्तार विभिन्न ऐतिहासिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित हुआ। इस अवधि में शेयर बाजार ने कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे, जो इसकी संरचना, कार्यप्रणाली और निवेशकों की भागीदारी को बदलने में सहायक साबित हुए। यहाँ हम 20वीं सदी के दौरान भारत में शेयर बाजार के विस्तार की मुख्य विशेषताओं और घटनाओं पर ध्यान देंगे:
### 1. **स्वतंत्रता के बाद (1947)**
- **आर्थिक नीतियाँ:** स्वतंत्रता के बाद भारत ने एक नियोजित आर्थिक प्रणाली को अपनाया, जिसमें सरकार ने प्रमुख उद्योगों का नियंत्रण अपने हाथ में लिया। इससे शेयर बाजार का विकास धीमा हो गया और निवेशकों की रुचि में कमी आई।
- **नियमन की कमी:** इस अवधि में शेयर बाजार में अनियमितताओं और धोखाधड़ी की घटनाएँ बढ़ गईं, क्योंकि बाजार में कोई ठोस नियम या विनियम नहीं थे।
### 2. **1947-1991: निरंतर विकास और चुनौतियाँ**
- **सीमित विकास:** इस समय के दौरान, भारतीय शेयर बाजार का विकास सीमित रहा। सरकारी बांड और अन्य सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर निवेशकों का झुकाव बढ़ा।
- **1960 का दौर:** 1960 के दशक में, औद्योगिक विकास के साथ, शेयर बाजार में कुछ तेजी आई। शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या बढ़ने लगी, लेकिन अभी भी यह विकास स्थिर था।
### 3. **1980 का दशक: पुनरुत्थान और सुधार**
- **गति में बदलाव:** 1980 के दशक में, भारत में उदारीकरण के पहले संकेत दिखने लगे। सरकार ने निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना शुरू किया, जिससे औद्योगिक और व्यावसायिक गतिविधियाँ बढ़ीं।
- **बंबई स्टॉक एक्सचेंज (BSE):** BSE ने इस दशक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1986 में, BSE ने एक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार प्रणाली को लागू किया, जिससे व्यापार की प्रक्रिया में तेजी आई।
### 4. **1991 के आर्थिक सुधार: क्रांतिकारी परिवर्तन**
- **आर्थिक उदारीकरण:** 1991 में भारत ने आर्थिक सुधारों का एक बड़ा पैकेज पेश किया, जिसमें वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण की दिशा में कई कदम उठाए गए।
- **विदेशी निवेश:** इस समय के दौरान, भारत में विदेशी निवेशकों की रुचि तेजी से बढ़ी। सरकार ने विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) को शेयर बाजार में निवेश करने की अनुमति दी, जिससे बाजार में ताजगी और प्रतिस्पर्धा आई।
- **नए विनियम:** 1992 में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना हुई, जिसने शेयर बाजार को विनियमित करने और निवेशकों के हितों की रक्षा करने के लिए नियम और विनियम लागू किए।
### 5. **शेयर बाजार की तकनीकी क्रांति**
- **इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग:** 1990 के दशक के अंत में, BSE और NSE दोनों ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग सिस्टम को लागू किया, जिससे ट्रेडिंग प्रक्रिया तेज, सटीक और पारदर्शी हो गई।
- **सेंसेक्स और निफ्टी का उदय:** BSE का सेंसेक्स और NSE का निफ्टी, जो बाजार की दिशा को दर्शाते हैं, ने निवेशकों को एक संकेतक प्रदान किया, जिससे उन्हें निर्णय लेने में मदद मिली।
### 6. **समाज में निवेशकों की बढ़ती भागीदारी**
- **निवेशकों की संख्या में वृद्धि:** 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में, निवेशकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। मध्यम वर्ग और युवाओं ने शेयर बाजार में निवेश करना शुरू किया।
- **फिनटेक और ऑनलाइन ट्रेडिंग:** 2000 के दशक में, ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्मों और फिनटेक कंपनियों का उदय हुआ, जिसने निवेश को अधिक सुलभ और सुविधाजनक बना दिया।
### निष्कर्ष
20वीं सदी के दौरान भारत में शेयर बाजार का विस्तार कई ऐतिहासिक घटनाओं और सुधारों के माध्यम से हुआ। आर्थिक उदारीकरण, नियामक सुधार, और तकनीकी प्रगति ने इसे एक सशक्त और विकसित बाजार में बदल दिया। इसने न केवल निवेशकों के लिए नए अवसर प्रदान किए, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज, भारत का शेयर बाजार वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और निरंतर विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
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