स्ट्रैडल रणनीति or स्ट्रैंगल रणनीति
**स्ट्रैडल** और **स्ट्रैंगल** दोनों ही ऑप्शन ट्रेडिंग में लोकप्रिय रणनीतियाँ हैं, जो वोलैटिलिटी से फायदा उठाने के लिए उपयोग की जाती हैं। इनका उपयोग तब किया जाता है जब ट्रेडर को उम्मीद होती है कि किसी स्टॉक या इंडेक्स की कीमत में बड़ा मूवमेंट होगा, लेकिन वे यह निश्चित नहीं होते कि यह मूवमेंट किस दिशा में (ऊपर या नीचे) होगा। आइए इन दोनों रणनीतियों को विस्तार से समझते हैं:
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### **1. स्ट्रैडल रणनीति (Straddle Strategy)**
**स्ट्रैडल** एक ऑप्शन ट्रेडिंग रणनीति है जिसमें ट्रेडर एक ही स्ट्राइक प्राइस पर और एक ही एक्सपायरी डेट के साथ एक **कॉल ऑप्शन** और एक **पुट ऑप्शन** खरीदता है। यह रणनीति बाजार में उच्च वोलैटिलिटी के दौरान इस्तेमाल की जाती है, जब उम्मीद होती है कि कीमत में बड़ा मूवमेंट होगा, लेकिन यह नहीं पता होता कि वह मूवमेंट किस दिशा में होगा।
#### **स्ट्रैडल की विशेषताएँ:**
- इसमें **एक ही स्ट्राइक प्राइस** और **एक ही एक्सपायरी डेट** पर एक कॉल और एक पुट ऑप्शन खरीदे जाते हैं।
- इसे एक **मार्केट न्यूट्रल रणनीति** माना जाता है, क्योंकि यह ट्रेडर को कीमत के ऊपर या नीचे दोनों दिशा में बड़े मूवमेंट से लाभान्वित होने की अनुमति देती है।
- ट्रेडर तब लाभ कमाता है जब स्टॉक की कीमत **ब्रेक-ईवन पॉइंट्स** के बाहर चली जाती है।
#### **स्ट्रैडल का ब्रेक-ईवन पॉइंट**:
- **उपरी ब्रेक-ईवन पॉइंट (Upper BEP)** = स्ट्राइक प्राइस + (कॉल और पुट ऑप्शन का कुल प्रीमियम)
- **निचला ब्रेक-ईवन पॉइंट (Lower BEP)** = स्ट्राइक प्राइस - (कॉल और पुट ऑप्शन का कुल प्रीमियम)
#### **उदाहरण**:
- मान लीजिए, आप ₹1000 की स्ट्राइक प्राइस पर एक कॉल और एक पुट ऑप्शन खरीदते हैं।
- **कॉल प्रीमियम** = ₹50 और **पुट प्रीमियम** = ₹40।
- आपका कुल निवेश = ₹50 + ₹40 = ₹90।
- आपके ब्रेक-ईवन पॉइंट्स होंगे:
- **ऊपरी BEP** = ₹1000 + ₹90 = ₹1090
- **निचला BEP** = ₹1000 - ₹90 = ₹910
- इसका मतलब है कि अगर स्टॉक की कीमत ₹910 से कम या ₹1090 से ज्यादा जाती है, तो आपको लाभ होगा। अगर कीमत इन स्तरों के बीच रहती है, तो आपको नुकसान होगा।
#### **कब उपयोग करें?**
- जब आपको किसी बड़े इवेंट (जैसे कमाई की रिपोर्ट, कंपनी की घोषणा, आदि) के बाद स्टॉक में बड़ी चाल की उम्मीद हो।
- जब आपको यकीन न हो कि स्टॉक ऊपर जाएगा या नीचे, लेकिन आप वोलैटिलिटी का फायदा उठाना चाहते हैं।
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### **2. स्ट्रैंगल रणनीति (Strangle Strategy)**
**स्ट्रैंगल** रणनीति स्ट्रैडल की तरह ही होती है, लेकिन इसमें कॉल और पुट ऑप्शन्स की **स्ट्राइक प्राइस अलग** होती है। यह रणनीति भी वोलैटिलिटी के आधार पर बनाई जाती है, लेकिन इसमें थोड़ा कम जोखिम होता है, क्योंकि स्ट्राइक प्राइस अलग-अलग होने से प्रीमियम कम होता है। हालांकि, इससे ब्रेक-ईवन पॉइंट्स को छूना कठिन हो सकता है।
#### **स्ट्रैंगल की विशेषताएँ:**
- इसमें **अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस** पर एक कॉल और एक पुट ऑप्शन खरीदा जाता है।
- आमतौर पर, पुट ऑप्शन को लोअर स्ट्राइक प्राइस और कॉल ऑप्शन को हायर स्ट्राइक प्राइस पर खरीदा जाता है।
- यह रणनीति भी वोलैटिलिटी से फायदा उठाने के लिए बनाई जाती है, लेकिन इसमें प्रीमियम स्ट्रैडल की तुलना में कम होता है।
#### **स्ट्रैंगल का ब्रेक-ईवन पॉइंट**:
- **उपरी ब्रेक-ईवन पॉइंट (Upper BEP)** = कॉल ऑप्शन की स्ट्राइक प्राइस + (कॉल और पुट ऑप्शन का कुल प्रीमियम)
- **निचला ब्रेक-ईवन पॉइंट (Lower BEP)** = पुट ऑप्शन की स्ट्राइक प्राइस - (कॉल और पुट ऑप्शन का कुल प्रीमियम)
#### **उदाहरण**:
- मान लीजिए, आप ₹1050 की स्ट्राइक प्राइस पर एक कॉल और ₹950 की स्ट्राइक प्राइस पर एक पुट ऑप्शन खरीदते हैं।
- **कॉल प्रीमियम** = ₹30 और **पुट प्रीमियम** = ₹20।
- आपका कुल निवेश = ₹30 + ₹20 = ₹50।
- आपके ब्रेक-ईवन पॉइंट्स होंगे:
- **ऊपरी BEP** = ₹1050 + ₹50 = ₹1100
- **निचला BEP** = ₹950 - ₹50 = ₹900
- इसका मतलब है कि अगर स्टॉक की कीमत ₹900 से कम या ₹1100 से ज्यादा जाती है, तो आपको लाभ होगा। अगर कीमत इन स्तरों के बीच रहती है, तो आपको नुकसान होगा।
#### **कब उपयोग करें?**
- जब आपको उम्मीद हो कि बाजार में अच्छा मूवमेंट होगा, लेकिन आप कम प्रीमियम का भुगतान करना चाहते हैं।
- जब आप स्ट्रैडल के मुकाबले कम जोखिम के साथ ट्रेड करना चाहते हैं, लेकिन आपको ब्रेक-ईवन पॉइंट तक पहुंचने के लिए बड़े मूवमेंट की उम्मीद हो।
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### **स्ट्रैडल vs स्ट्रैंगल: मुख्य अंतर**
| | **स्ट्रैडल (Straddle)** | **स्ट्रैंगल (Strangle)** |
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| **स्ट्राइक प्राइस** | एक ही स्ट्राइक प्राइस पर कॉल और पुट खरीदा जाता है। | अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस पर कॉल और पुट खरीदा जाता है। |
| **प्रीमियम** | उच्च प्रीमियम, क्योंकि दोनों ऑप्शन्स की स्ट्राइक प्राइस समान होती है। | कम प्रीमियम, क्योंकि स्ट्राइक प्राइस अलग-अलग होती हैं। |
| **ब्रेकेवन पॉइंट** | ब्रेक-ईवन पॉइंट्स एक के करीब होते हैं। | ब्रेक-ईवन पॉइंट्स अधिक दूर हो सकते हैं। |
| **मूवमेंट की आवश्यकता** | कीमत में छोटे मूवमेंट से भी फायदा हो सकता है। | बड़े मूवमेंट की आवश्यकता होती है। |
| **रिस्क/इनाम** | ज्यादा प्रीमियम होने के कारण रिस्क भी अधिक होता है। | कम प्रीमियम होने के कारण रिस्क कम होता है, लेकिन इनाम की संभावना भी कम हो सकती है। |
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### **निष्कर्ष:**
**स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल** दोनों ही रणनीतियाँ वोलैटिलिटी से लाभ उठाने के लिए होती हैं, लेकिन ट्रेडर की जरूरत के अनुसार उनका चुनाव किया जाता है। यदि आपको बहुत ज्यादा वोलैटिलिटी की उम्मीद है और आप ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करने को तैयार हैं, तो **स्ट्रैडल** बेहतर हो सकता है। यदि आप कम जोखिम लेना चाहते हैं और कम प्रीमियम के साथ बड़ी चाल की उम्मीद कर रहे हैं, तो **स्ट्रैंगल** रणनीति अधिक उपयुक्त हो सकती है।
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